मेरा नाम पिंकी पाठक है, पुत्री श्री दयाशंकर पाठक। मेरा परिचय शायद इतना ही काफी है। आज से तीन महीने पहले मेरी जिंदगी बिलकुल ठीक थी पर 26 जुलाई के बाद से मेरी और मेरे परिवार की पूरी परिस्थितियां ही बदल गई।
मैं चार भाई-बहन में से सबसे छोटी हूं। मेरे भाई सबसे बड़े है। हम तीन बहनों का एक ही अकेला भाई है। मेरे भाई को शुरुआत में प्रोटीन डिस्चार्ज हो रहा था, जिसके लिए पापा ने उन्हें गोरखपुर से लेकर बीएचयू तक के बेस्ट डॉक्टर को दिखाया। मई महीने के अंत से ही भईया की तबियत थोड़ी बहुत ख़राब थी। फिर 26 जुलाई की रात गोरखपुर के निजी अस्पताल में भईया को ब्रेन का झटका आया, इसके बाद वहां के डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिए, फिर हम लोग भईया को लेकर गोरखपुर के सिटी हॉस्पिटल गए। वहां पर भईया को 9 दिनों तक डॉक्टरों ने आईसीयू में रखा और वहां हमारे 6 लाख रुपए लग गए और फिर 4 अगस्त की रात में उन डॉक्टर ने भी हाथ खड़े कर लखनऊ पीजीआई ले जाने को बोल दिया। गोरखपुर से पीजीआई मैं और मेरे पापा किस डर के साथ ले आए इसे बया करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मेरे भाई 5 घंटे तक एंबुलेंस में तड़पते रहे पर पीजीआई में बेड नहीं मिला। विवश होकर हम लोग लखनऊ के सहारा अस्पताल गए। जहां 12 घंटे के अंदर डॉक्टर की पूरी टीम लग गई और साफ-साफ शब्दों में बताया कि भईया को ब्रेन हेमरेज हो चुका है। कब? कैसे? कहां? इसका ठीक जवाब किसी के पास नहीं था। यहां मैं बताना चाहूंगी कि गोरखपुर के सिटी हॉस्पिटल में MRI तक नहीं हुआ।
सहारा में डॉक्टरों ने बताया कि भईया को MICU में रखना होगा और MICU का रोजाना का खर्चा 1 लाख तक भी आ सकता है आप लोग रखना चाहते हैं तो एडमिट करा दे। हमारे पास और कोई विकल्प ही नही था कैसे एक बाप अपने बेटे को और एक बहन अपने भाई को ऐसे देख पाती। सहारा अस्पताल के डॉक्टरों ने बोला कि यहां पर आप लोगों का ज्यादा पैसा लगेगा इसीलिए आप पीजीआई में प्रयास करते रहें। फिर यहां से शुरू हुआ मेरा असली संघर्ष मैं 7 अगस्त से 22 अगस्त तक पीजीआई जाकर हर सम्भव प्रयास करती रहीं कि भाई को बेड मिल जाए लेकिन वहां बस दुदकर ही मिली। मुझे कोई रास्ता नहीं दिखा तो मैंने सीएम आवास जाने का निर्णय लिया। 23-24 अगस्त को मैं लगातार गई। माननीय मुख्यमंत्री जी ने मेरी समस्या को सुना और निदान भी किया 26 अगस्त को भईया को बेड मिल गया। मगर तब भईया को MICU 103 बुखार हो रहा था। डॉक्टरों का कहना था कि ये इंफेक्शन हॉस्पिटल में रहने की वजह से हुआ है। भईया MICU मैं 26 दिनों तक और न्यूरो ICU में 2 दिन तक रहे। बहुत से डॉक्टरों ने सुझाव दिया कि इनको हॉस्पिटल ना रखे घर पर रखे और इनके लिए स्टॉफ रखे होम केयर करे तो यह जल्दी रिकवर होंगे। हम लोग जन्माष्टमी के दिन भईया को ले कर निकले। जैसे डॉक्टर ने हमे सुझाव दिया हमने वैसा ही किया पर परिस्थितियां फिर बदल गई एक रात भईया को फिर से ब्रेन का अटैक आया। फिर भईया को 4 दिन तक सहारा अस्पताल के न्यूरो ICU में भर्ती करना पड़ा। हम लोग आर्थिक रूप से पूरी तरह टूट गए हैं। बहुत ही शॉर्ट मे मैने अपने संघर्ष की कहानी लिखी है। पर बहुत कुछ है जो एक मध्यवर्गीय परिवार को जानना जरूरी है। अगर आप एक बेटी, बहन, पुत्री हैं तो मेरी कहानी जरूरी है आप लोगों तक पहुंचाना।