9 महीने का अवैज़ शेख़ बेक़ाबू होकर रोने लगता है जब वो अपनी मूंदी आँखों से अपनी माँ की जगह एक नर्स को अपनी देखभाल करता पाता है। वो इतना कमजोर है कि ज़्यादा रो भी नहीं पाता बल्कि ज़्यादा रोना उसकी कमजोरी को और बढ़ा देता है। उसका पेट एक बड़े लिवर टयूमर की वजह से फूल गया है जिसके चलते वो हिल-डुल भी नहीं सकता है। उसकी इसी हालत ने उसे इस छोटी सी उम्र में ICU में पहुंचा दिया है, जहाँ वो ज़िंदा रहने के लिए लड़ रहा है।
छोटा सा अवैज़ एक स्वस्थ बच्चा था जो शायद ही कभी बीमार पड़ा हो लेकिन सिर्फ तब तक, जब तक कि बार-बार बुखार चढ़ना रोज़ की बात नहीं बन गई थी।
बेबी अवैज़ स्वस्थ पैदा हुआ था और उसे दो महीने पहले तक कोई भी परेशानी नहीं थी। उसे बस अचानक बुख़ार चढ़ा जो बार-बार डॉक्टर को दिखाने पर भी ठीक नहीं हो पा रहा था। उसके माथे पर छोटे-छोटे फोड़े उभर आए थे जिसने उसके माता-पिता को चिंतित कर दिया था|
“मेरा छोटा सा बेटा बहुत हिम्मतवाला है वो इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं है तभी तो डॉक्टर्स भी हैरत में हैं कि कैसे इतना कुछ सहने के बाद भी उसने जिंदगी की डोर थामे रखी है। “लेकिन टयूमर ने उसके लिवर को पूरी तरह से ख़तम कर दिया है और मुझे डर है कि मैं उसे ज़्यादा वक़्त तक बचा नहीं पाऊँगा।” -शैख़ अब्दुल, पिता
छोटा सा अवैज़ एक स्वस्थ बच्चा था जो शायद ही कभी बीमार पड़ा हो लेकिन सिर्फ तब तक, जब तक कि बार-बार बुखार चढ़ना रोज़ की बात नहीं बन गई थी।
बेबी अवैज़ स्वस्थ पैदा हुआ था और उसे दो महीने पहले तक कोई भी परेशानी नहीं थी। उसे बस अचानक बुख़ार चढ़ा जो बार-बार डॉक्टर को दिखाने पर भी ठीक नहीं हो पा रहा था। उसके माथे पर छोटे-छोटे फोड़े उभर आए थे जिसने उसके माता-पिता को चिंतित कर दिया था| “हम उसे गोवा में रोज़ एक नए डॉक्टर के पास ले जाने लगे। वो उसे दवाईयाँ देते और एक दिन के लिए सब ठीक हो जाता। और दूसरे ही दिन बुख़ार फिर पूरे ज़ोर के साथ चढ़ जाता। उसे अजीब से लाल फोड़े भी माथे पर होने लगे थे। हम उसके लिए बहुत डर जाते थे क्योंकि उसका शरीर उस समय तेज़ बुख़ार से तप रहा होता था।” - सारा शैख़, माँ
डरे हुए माँ बाप उसे लेकर कई अस्पतालों में फिरते रहे और आख़िर में उन्हें बेंगलुरु आना पड़ा|
ईद के दिन छोटे से अवैज़ की हालत और भी बुरी हो गई। उसने पूरी तरह से खाना- पीना बंद कर दिया और तेज़ बुख़ार की वजह से लगभग बेहोश हो गया था। जब पूरी दुनिया जशन मना रही थी, ये मजबूर माँ- पिता अपने बेटे को बचाने की उम्मीद लिए मारे-मारे फिर रहे थे।“गोवा के डॉक्टर्स का कहना था कि हमें इसे जितना जल्दी हो सके त्रिची ले जाना होगा। हमने पैसे उधार लिए और बिना एक भी पल गंवाए उसे त्रिची लेकर गए। मगर त्रिची में हमें कोई मदद नहीं मिली। डॉक्टर्स समझ ही नहीं पा रहे थे कि उसे हुआ क्या है। फ़िर हमें हुबली जाने के लिए कहा गया - मगर वहाँ भी वही सब हुआ जैसा त्रिची में हुआ था। आख़िरकार हमें एक इमरजेंसी एम्बुलेंस किराये पर लेनी पड़ी और आधी रात के करीब उसे बंगलुरु के एक अच्छे अस्पताल में लेकर जाना पड़ा क्योंकि उसकी हालत इतनी बिगड़ चुकी थी कि हमें लगा कि अब वो नहीं बचेगा।” - शैख़ अब्दुल
अवैज़ को एक लिवर टयूमर था जिसके कारण उसके लिवर ने पूरी तरह से काम करना बंद कर दिया था।
“जब उन्होंने मुझे बताया की मेरे छोटे से बच्चे को कैंसर है , मैं पूरी तरह से टूट गया था क्योंकि मुझे लगता था कि ये सब जो उसके साथ हो रहा है सिर्फ़ एक बुरे बुख़ार की वजह से है। डॉक्टर्स ने हमें बताया कि उसका लिवर बूरी तरह से इन्फेक्ट(संक्रमित ) हो चूका है और फ्लूइड(तरल पदार्थ ) से भी भर गया है। मेरा बेटा हमेशा से बहुत चुस्त था, उसे लोगों से मिलना जुलना बहुत पसंद था , और वो कभी-कभी ही रोता था। क़ाश कि भगवान् ने उसकी जगह मुझे कैंसर दे दिया होता। इतने छोटे से बच्चे ने किसी का क्या बिगाड़ा होगा जो इसकी किस्मत में ये सब लिखा है?” - सारा
यह प्यारा सा बच्चा बहुत ही नाज़ुक हालत में ICU में है, लेकिन इसके माता-पिता के पास इतना पैसा नहीं है कि वो उसे वहाँ रख सकें।
अवैज़ जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है। डॉक्टर्स उसकी हालत को बेहतर कर सकते हैं, लेकिन कुछ भी तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि उसे सही और पूरा इलाज ना मिल जाए। उसके पिता जो कि एक हार्डवेयर की दूकान में काम करते हैं, अभी तक अपने सारे गहने बेच चुके हैं और अपनी सारी बचत भी अस्पताल के बिल चुकाने में लगा चुके हैं। वो अब और इलाज कराने की हालत में नहीं हैं, लेकिन ये भी सच है कि बिना इलाज के उनका बेटा मर जाएगा।“ मेरा बड़ा बेटा अरैज़ (जोकि बैंगलुरु में हमारे रिश्तेदारों के पास रहता है) मुझसे पूछता है कि में अवैज़ को कब अस्पताल से वापस घर लेकर आऊँगा। वो कहता है कि वो उसे अपने सारे खिलौने देने के लिये भी तैयार है, बस वो अपने छोटे भाई को सही-सलामत देखना चाहता है। मुझे नहीं पता कि मैं उसे क्या जवाब दूँ। अभी तक, हम किसी न किसी तरह से संभाल रहे थे। मगर अब आगे चीज़ें और भी मुश्किल होती जाएँगी| मेरी पत्नी जो खून देख भी नहीं सकती थी, अब अपने अवैज़ के लिए मज़बूत होने की कोशिश कर रही है। हम रोज अल्लाह से दुआ करते हैं| सिर्फ़ वो ही अब हमारी मदद कर सकते हैं। “ - शैख़ अब्दुल
आप किस तरह मदद कर सकते हैं
अवैज़ को ज़िंदा रहने के लिए और भी कीमोथेरेपी और लम्बे समय तक ICU में रहने की ज़रुरत है। जब से वो ICU में इस जानलेवा बीमारी से लड़ रहा है तभी से शैख़ अब्दुल और सारा भी एक अलग ही जंग लड़ रहे हैं। शैख़ पिछले एक महीने से काम पर नहीं गया है। वो एक महीने में 8000 रु कमाता था पर अब उसके पास एक पाई भी नहीं है। उन्होंने अस्पताल के बाहर ही 500 रु रोज़ पर एक कमरा किराये पर लिया हुआ है और अब उनके पास खाने के लिए भी शायद ही कोई पैसा बचा हो। ICU को छोड़ो, यहाँ तक की दवाई और दूसरी जरूरतों को पूरा करना भी उनके लिए इस वक़्त नामुमकिन हो रहा है। उन्हें अपने छोटे से बच्चे को बचाने के लिए आपकी मदद की ज़रूरत है।Your small contribution can help save 9-month-old Awaiz